ﺑﺎﮐﺮﺍﻭﺍﺕ ﺑﻪ ﺩﻳﺪﺍﺭ ﺧﺪﺍ ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﺑﺮ ﺧﻼﻑ ﺟﻬﺖ ﺍﻫﻞ ﺭﻳﺎ، ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﺭﻳﺶ ﺧﻮﺩ ﺭﺍ ﺯ ﺍﺩﺏ ﺻﺎﻑ ﻧﻤﻮﺩﻡ ﺑﺎ ﺗﻴﻎ...!
ﻫﻤﭽﻨﺎﻥ ﺁﻳﻨﻪ ﺑﺎ ﺻﺪﻕ ﻭ ﺻﻔﺎ، ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﻣﻦ ﺣﺮﻭﻑ ﻋﺮﺑﯽ ﺭﺍ ﮐﻪ ﻧﺪﺍﺭﻡ ﺩﺭ ﯾﺎﺩ...!
ﻧﻨﻤﻮﺩﻡ ﺯ ﺗﻪ ﺣﻠﻖ ﺍﺩﺍ، ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﻫﺮﮔﺰ ﺍﺯ ﻗﺎﺳﻢ ﻭ ﺟﺒﺎﺭ ﻧﮕﻔﺘﻢ ﺳﺨﻨﯽ...!
ﮔﻔﺘﻢ ﺍﺯ ﺻﻠﺢ ﻭ ﺻﻔﺎ، ﻣﻬﺮ ﻭ ﻭﻓﺎ ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﻫﻤﭽﻮ ﻭﺍﻋﻆ ﻧﻪ ﻋﺼﺎ ﺩﺍﺷﺘﻢ ﻭ ﻧﻪ ﻧﻌﻠﻴﻦ...!
ﺳﺮﺧﻮﺵ ﻭ ﺑﯽ ﺧﺒﺮ ﻭ ﺑﯽ ﺳﺮ ﻭ ﭘﺎ ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﻣﺪﻋﯽ ﮔﻔﺖ ﭼﺮﺍ ﺭﻓﺘﯽ ﻭ ﭼﻮﻥ ﺭﻓﺘﯽ ﻭ كِي...؟!
ﻣﻦ ﺩﻟﺒﺎﺧﺘﻪ،ﺑﯽ ﭼﻮﻥ ﻭ ﭼﺮﺍ ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷﺪ...!
ﺗﻮ ﺳﺮﺕ ﭘﻴﺶ ﺧﺪﺍ ﺭﻭﺯ ﻭ ﺷﺒﺎﻥ ﺧﻢ ﺷﺪ ﻭ ﺭﺍﺳﺖ...!
ﻣﻦ ﺑﻪ ﺧﻮﺩ ﺁﻣﺪﻡ ﻭ ﺭﻗﺺ ﮐﻨﺎﻥ، ﺭﻓﺘﻢ ﻭ ﺷد...!